Saturday 31 May 2014

प्रार्थना


प्रार्थना


जितनी मंदिर में श्रद्धा हो
उतना मस्जिद का हो आदर
पूजा स्थल है भारत के 
हो गुरुद्वारा या गिरजाघर

मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे
इक मालिक के है घर सारे
मानव जीवन जिसने देकर 
हमको भेजा है धरती पर

इक मालिक के बन्दे होकर
आपस में ना हम टकराएं
संकल्प उठा कर आज कहें हम
रहते है हम सब मिलजुल कर


- वीरेश अरोड़ा "वीर"

कर गए


कर गए






जान देकर देश को आज़ाद तो वो कर गए
पर  लुटेरों के हवाले देश को फिर कर गए 

दर्द ही हमको मिलें हैं हर घड़ी हर मोड़ पर
ढूँढने खुशियों को हम इस देश में जिधर गए

रह रहे थे हम सभी मिलकर के भारत देश में
युग कई इस बात को बीते हुए गुजर गए

घूमती है लाश लोगों की हमारे देश में
आत्मा रहती थी जिनमें वो थे इंशा मर गए

देख कर हालत हमारे देश की लगने लगा 
जो थे गुनहगारो के दिल में अब वो सारे डर गए



- वीरेश अरोड़ा "वीर"

Friday 30 May 2014

अभिलाषा



अभिलाषा


हर रिश्ते से पहले बेटा 
मैं भारत माँ का कहलाऊँ,
है अभिलाषा मेरी इतनी 
माँ की सेवा कुछ कर जाऊँ


क्या जात धरम मालूम नहीं 
किस प्रान्त का हूँ क्या बतलाऊँ,
मैं भारत माँ का बेटा हूँ
बस हिन्दुस्तानी कहलाऊँ 

मैं स्वार्थ भुला दूं अपने सब 
परमार्थ के पथ को अपनाऊँ,
हित नहीं राष्ट्र से बढ़कर कुछ 
कोशिश कर सबको समझाऊँ 

भ्रष्ट नहीं है कोई भारत में 
सदाचारी है सब कह पाऊँ 
सोने की चिड़िया का वासी 
जग में वापस मैं कहलाऊँ 

गाँधी जी का अनुयायी बन
उनके पथ पर चलता जाऊँ,
कोशिश कर उनके सपनो को 
साकार बना कर दिखलाऊँ 

जो अमर शहीद हैं भारत के 
उनको न भूल कभी पाऊँ 
और रक्षा में भारत माँ की 
मरना हो हँस कर मर जाऊँ 



                             - वीरेश कुमार अरोड़ा "वीर"



Thursday 22 May 2014

पछतावा


पछतावा





इन हसीनाओ से बचके तू निकल,
इनसे कुछ नहीं तू पाएगा,
कर रहा है तो प्यार तो फिर सोच ले,
कल तू मेरी ही तरह पछताएगा I

क्योकि

मैंने माँगी थी जो थोड़ी सी खुशी,
गम मेरे महबूब से इतना मिला,
मुद्दतों से सह रहा हूँ मैं जिसे,
दो घडी भी तू नहीं सह पायेगा I

- वीरेश अरोड़ा "वीर"


समय की मांग


समय की मांग



पहले की सोच

गर कुछ कहना होगा मुझको
मैं बस सच ही कह पाउँगा
गर मुझको कुछ सुनना होगा
मैं सच को ही सह पाउँगा
गर सच मैं ना कह पाया तो
मैं बस चुप ही रह जाऊंगा
झूठ समय की मांग अगर है
मांग ना पूरी कर पाउँगा


आज की सोच

गर सच कहना होगा मुझको
मैं सच सच ना कह पाउँगा
गर सच सुनना होगा मुझको
मैं सच को ना सह पाउँगा
जो चाहो मैं कुछ ना बोलूं
तो चुप भी ना रह पाउँगा
झूठ समय की मांग "वीर" है
झूठ दनादन कह जाऊंगा


- वीरेश अरोड़ा "वीर"



-:::: भारत माँ के बेटों ::::-









-:::: भारत माँ के बेटों ::::-


हे भारत माँ के बेटों भारत माँ की संतानों,
जो है देश की आन बचानी, तो दो तुम कुछ बलिदानी !

रिश्वत खोरी को छोडो, मत घूस से नाता जोड़ो 
और भ्रष्टाचार के पथ से, अपना नाता तुम तोड़ो,
अब जग में भारत माँ की, हमको है शान बढ़ानी
जो है देश की आन बचानी.........



जहाँ हरिश्चंद्र ने अपने सच का डंका था बजाया
उस देश में जानो कैसे फिर झूठ ने राज जमाया 
आओ मिलकर दफना दें, इस झूठ की दें कुर्बानी 
जो है देश की आन बचानी.........

कहीं जात-धरम के झगडे, कहीं ऊंच नीच की बातें 
कुछ ऐसा हम कर पाते, मिलकर के सभी रह पाते 
हर प्रान्त का रहने वाला, पहले है हिन्दुस्तानी 
जो है देश की आन बचानी....

हे भारत माँ के ......




Wednesday 21 May 2014

-:::: देश की बात ::::--


-:::: देश की बात ::::--



बात बहुत पुरानी है,
सबकी जानी-मानी है
नेता जी के गाँव का दौरा
शीघ्र चुनाव निशानी है.

जो देते है ऊँचें भाषण
प्रलोभन और झूठे आश्वासन
काम यदि वें कुछ कर जाएं
तब होती हैरानी है.

हाथ जोड़कर वोट मांगतें
और गधे को बाप मानते
सत्ता हाथ में आ जाने पर
करते वो मनमानी है.

जब मिलते है यार पुराने (सभा गृह में)
चाहे बीती सबकी जाने
कहते सुनते दिल न भरता
बात करें बचकानी है.

रहते है जब तक साथ में
चलते हैं दे हाथ हाथ में
सिद्ध स्वार्थ के हो जाने पर
कर जाते बेईमानी है.

जाने कैसी मजबूरी है
जाने कैसा नाता है ये,
उनको ही कहना है सब कुछ
जिनसे बात छिपानी है.

जो नेता है भ्रष्टाचारी
उनको सीख सिखानी है
और भ्रष्टाचार मिटाने को अब
हर देशवासी ने ठानी है.

हर नेता को याद दिला दूं
गर मुमकिन हो मैं समझा दूं
भारत माँ के बेटे हम सब
सच्चे हिन्दुस्तानी है…

    - वीरेश  अरोड़ा "वीर"





"चंपक वन में होली है"

होली पर एक बाल कविता ... "चंपक वन में होली है"




चंपकवन में होली है
खेल रहे हमजोली है
चूहा डाले बिल्ली पे रंग
लोंमड खेले शेरू के संग
बंदर ने मारी किलकारी
चीकू ले आया पिचकारी
भालू बजा रहा है चंग
हाथी नाचे मस्त मलंग
गीदड़ बना अब ढोली है
चंपक वन में होली है ..

- वीरेश अरोड़ा "वीर"




होली पर एक और बाल कविता -

होली का त्यौहार है आया



होली का त्यौहार है आया
रंगों की बाहर है लाया
डालें कच्चा पक्का रंग
सभी खेल रहे है संग
नाचें गाएं धूम मचाये
मिलकर ढोलक चंग बजाये
लेकर रंग रंगीले आया
होली का त्यौहार है आया

राम रहीम बने हमजोली
डालें रंग बनाकर टोली
कोई धर्म हो कोई जाति
सभी बने है संगी-साथी
गले लगे सब लगा गुलाल
दिल में ना अब कोई मलाल
भेदभाव मिटाने आया
होली का त्यौहार है आया



- वीरेश अरोड़ा "वीर"


समीक्षक




समीक्षक



किसी एक ग्रुप में एक छोटी सी रचना पर बहुत सारी आलोचनात्मक टिप्पणीयों को पढने के बाद बैठे बैठे जो लिख गया प्रस्तुत है :



रचनाकार का अनुरोध
रचना पर टिप्पणी दो
चाहे नकारात्मक हो
रचनाकार का अनुरोध
हमको भा गया
हमारे भीतर छिपे
समीक्षक को जगा गाया
मेरे भीतर
कब से छिपा
समीक्षक जाग गया
और एक छोटी सी रचना पर
विराट समीक्षा दाग गया
रचना पर समीक्षा
विराट रुप पा गई
और समी़क्षा के भीतर
रचना समा गई
बिखर गई
टूट गई
कहीं खो गई
रचना से रोचक
समीक्षा हो गई
और मूल रचना
अपना अर्थ खो गई
अर्थहीन हो गई.......

- वीरेश अरोड़ा "वीर"

याद





याद


जब तेरी याद आती है

याद आता है

तेरा मुस्कुराना,

मंद मंद  हँसना

वो तेरा लजाना

और धीरे से तेरा

बल खाके गुजर जाना,

तेरी हर बात आँखों में घूम जाती है

जब तेरी याद आती है ....

याद आता है बहुत

वो तेरा मिलना

मेरा हाथ थामे

तेरा साथ चलना

वो तेरी चुनरी का लहराना

हवा से

बालों का बिखर जाना,

तेरे बदन की वो खुशबू

आज भी आ जाती है

जब तेरी याद आती है ....



"रिश्ता/सम्बंध" पर मेरे कुछ हाइकु





रिश्ता/सम्बंध



थे शर्तो पर

कब तक रहते

रिश्ते हमारे



कोमल धागे

संबंधों के उलझे

गांठ का डर



अहं की गर्मी

रिश्तो का वटवृक्ष

ठूंठ हो गया



बंधक रिश्ते

शर्तो की बेडियो में

चलते कैसे



रिश्तों का घर

अहम् की दीमक

रिसते रिश्ते



छिप ना पाई

संबंधों की खटास

जग हँसाई



-वीरेश कुमार अरोड़ा "वीर"

- रीत -


- रीत -


रीत है प्यारे
पके आम पे सब
पत्थर मारे



नज़र आने लगा


                                        









जब दोस्तों के दिल मे ज्यादा छल नज़र आने लगा
तब दुश्मनो के दल मे ज़्यादा बल नज़र आने लगा I


देख कर बिगड़ी हुई हालत हमारे देश की
आज मुझको आने वाला कल नज़र आने लगा I


जैसे तैसे अब तलक तो खैच ली ये जिन्दगी
हो सकेगा अब गुजर मुश्किल नज़र आने लगा I

बन रही बिल्डिंग कई फिर बन रहा है एक शहर
फिर मुझे कटता हुआ जंगल नज़र आने लगा I

प्यार से रहने की उसने बात की जब भी अगर
आज के लोगो को वो पागल नज़र आने लगा I



चाहता हूँ मैं


गज़ल


  





ना जाने क्या अब और, करना चाहता हूँ मैं,
जीना अब और नहीं, मरना चाहता हूँ  मैं .

मर मर कर जीने से, क्या हांसिल होना है,
जी जी कर रोज़ नहीं, मरना चाहता हूँ मैं.

जीते जी खौफ रहा, मर जाने का मुझको,
मरने से अब और नहीं, डरना चाहता हूँ मैं .

हर रोज़ खुदा से मैंने, माँगा है कुछ ना कुछ,
कर्जा अब और नहीं, करना चाहता हूँ मैं .




सह गए



गज़ल



गम जुदाई का तो हँसकर सह गए
सामने आये तो आँसू बह गए

राजेगम दिल में रखेंगे सोचा था
अश्क आँखों के मगर सब कह गए

देखकर पहचानने की कोशिशें
उनके दिल की बात हमसे कह गए

मुद्दतों से इंतजार उनका किया
क्यों किया अब सोचते ही रह गए

ख्वाब देखे थे बहुत तन्हाई में
मिट्टी के घर की तरह सब ढेह गए


                                                 - वीरेश अरोड़ा "वीर"

Tuesday 20 May 2014

सर्दी - बाल कविता




सर्दी - बाल कविता



सर्दी हमको खूब है भाती
जिसे दिवाली लेकर आती 
गरमा - गर्म खाने को हो मन 
रहें धूप में बैठे हरदम 
मच्छर हो जाते है गुम
सबसे प्यारा सर्दी का मौसम
सर्दी प्यारी कभी न जाए 
प्रकृति भी इसका खेद जताए 
पतझड़ लाकर खेद जताती 
होली इसको लेकर जाती 

              - वीरेश अरोड़ा "वीर"

प्यास पर कुछ हाइकु




प्यास पर कुछ हाइकु



प्यास जो टूटी
कुछ कर जाने की
जीना बेकार

प्यास थी जब
जिन्दा था, हुआ तृप्त
मृत घोषित !

प्यास से आस
देश के विकास की
कभी ना टूटे !

मैं भी नहा लूँ
मैलापन मिटा लूं
गंगा की प्यास !




एक प्रश्न







एक प्रश्न



आज उनका आना
और मुँह  फेरकर चले जाना,
याद दिलाता है
वो दिन,
जो गुजरते न थे
मिले बिन,
दिवानों की तरह
जो मिलते थे कभी,
क्यों गुजर गए
वो बनकर अजनबी ?




एक प्रश्न










एक प्रश्न


 गुजर गए बरस
आँख गई तरस
कर रही हूँ इंतजार
जाने कब हो जाए दीदार
खड़ी हूँ दरवाजे पर
तेरे इन्तजार में
अड़ी हूँ ज़िद पर
मैं तेरे प्यार में
एक बार आ
बस इतना बता,
क्या मुझसे हो गयी खता,
मैं यह मानूं
कि तू खफा है,
या ये 
मानूं 
कि तू बेवफा है ?????


क्षणिकाएँ




आरज़ू




गर मिल सके तू मुझको,

बस एक बार मिल जा,

मैं तुझे गले लगाकर,

सारे गिले मिटा लूँ I




::::::::




गर ये तय है मिलोगे मुझे मरके,

तो क्यूँ न मर जाऊँ मैं तेरा क़त्ल कर के ///









Monday 19 May 2014

गीतिका (1)




गीतिका



                  



सभी को दर्दे दिल अपना यूं बतलाया नहीं जाता.
मगर अब दर्द को दिल में छिपाया भी नहीं जाता.


सकूं मिलता मुझे इस दिल का थोडा बोझ कम होता.
मगर मैं सामने उसके कभी कुछ कह नहीं पाता.

किसी को भी बता के बोझ दिल का कम मैं  कर लेता.
भरोसा इस ज़माने में किसी पर कर नहीं पाता.

उसी को ढूंढने में जिन्दगी सारी गवां डाली .
रहकर निगाहों में भी जो नज़र नहीं आता..










मूल मंत्र


मूल मंत्र


सबसे प्यारे प्यार किये जा
प्यार बाँटकर यार जिए जा

हार मिली है तुझको जिनसे 
उनको कुछ उपहार दिए जा 

दुःख देते जो तुझको हर दिन 
सुख उनको हर बार दिए जा 

बीती बातें छोड़ के प्यारे 
कल पर कुछ विचार किये जा 

क्या होना है कल क्या जाने 
खुद को तू तैयार किये जा 

ना करना चाहे तू कुछ भी 
करने का इकरार किये जा 

करनी का फल पाना होगा 
लाख भले इनकार किये जा 







Sunday 18 May 2014

मंहगाई






मंहगाई







तेवर देखे मंहगाई के
खाने पर विचार हो गए
बिन सब्जी खाने को रोटी
मिर्ची से तैयार हो गए.

बड़ जाते है दाम तेल के
कभी किराये बड़े रेल के
बिजली पानी के भी घर में
मुश्किल अब दीदार हो गए.

एक टके में कल बिकते थे
तुच्छ समझते थे जिनको हम
भाव बड़े अचानक उनके
मंत्री बन सरकार हो गए.

स्वर्ण जयंती मना चुके हम
देश स्वतंत्र भारत की लेकिन,
जो देखे थे देश की खातिर
सपने सब बेकार हो गए.

सोचा वेतन वाले इक दिन
लें फल कुछ बच्चो के खातिर
भाव सुने तो न लेने से
इस माह फिर लाचार हो गए.

बच्चों के स्कूल खर्च में
पूरा वेतन जाता है अब,
कैसे और पढ़ाते उनको
कर्जा ले कर्जदार हो गए.

गर बच्चे स्कूल ना जाएँ
पढ़े नहीं अनपढ़ रह जाएँ
क्या होगा फिर कल का भारत
सोचा तो बीमार हो गए.

               
- वीरेश अरोड़ा "वीर"







ठूंठ









          ठूंठ


मेरे प्यार के पौधे को
बिना किसी लालच के
प्यार की खाद,
संयम की धूप,
विश्वास के पानी से
मैंने बड़ा किया,
अचानक
एक दिन के
मौसम परिवर्तन से,
मेरे प्यार का पौधा
सूखकर ठूंठ हो गया,
आज जब कभी
पड़ती है उस पर नजर
एक दर्द सा दिल में उठता है,
आखिर
पूरी जिन्दगी का
सारा प्यार
मैंने उसे
खाद के रूप में दिया
इसलिए
मैं उसे फैकूंगा नहीं,
दिल का दर्द मिटाने को
एक दूसरा पौधा लाया हूँ मैं
दुगने प्यार और विश्वास से
उसे बड़ा कर रहा हूं,
मैंने इस पौधे को
उस ठूंठ के आगे खड़ा किया है .
मेरा ये पौधा
अब फल भी देने लगा है
मगर अपनी आगोश में
उस ठूंठ को
पूरी तरह
छिपा नहीं पाया है.....



      = वीरेश अरोड़ा "वीर"




मैं और मरू

"मैं और मरू "


मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छा
ऊँ,
मरू भूमी के
कृषकों को
मैं हर्षाऊँ,
अपने कालेपन को लाकर,
खेतोँ में उनको ले जा
ऊँ
खेत जुता
ऊँ
मन हर्षित कर दूं,
बीज लगाते देखूं उनको
खुश हो जा
ऊँ
यथोवान्छित वृष्टि करके
बंजर को उपजाऊ कर दूं,
रेगिस्तान हटाने को,
हरयाली को लाने को
फिर मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छा
ऊँ
मरुप्रदेश में हरयाली हो
और मैं मिट जा
ऊँ .....



अभिलाषा



अभिलाषा


हर रिश्ते से पहले बेटा 
मैं भारत माँ का कहलाऊँ,
है अभिलाषा मेरी इतनी 
माँ की सेवा कुछ कर जाऊँ 

क्या जात धरम मालूम नहीं 
किस प्रान्त का हूँ क्या बतलाऊँ,
मैं भारत माँ का बेटा हूँ
बस हिन्दुस्तानी कहलाऊँ 

मैं स्वार्थ भुला दूं अपने सब 
परमार्थ के पथ को अपनाऊँ,
हित नहीं राष्ट्र से बढ़कर कुछ 
कोशिश कर सबको समझाऊँ 

भ्रष्ट नहीं है कोई भारत में 
सदाचारी है सब कह पाऊँ 
सोने की चिड़िया का वासी 
जग में वापस मैं कहलाऊँ 

गाँधी जी का अनुयायी बन
उनके पथ पर चलता जाऊँ,
कोशिश कर उनके सपनो को 
साकार बना कर दिखलाऊँ 

जो अमर शहीद हैं भारत के 
उनको न भूल कभी पाऊँ 
और रक्षा में भारत माँ की 
मरना हो हँस कर मर जाऊँ 

        
       -- वीरेश कुमार अरोड़ा 






मेरा देश महान



गीत - मेरा देश महान





देश है मेरा महान

इसकी न्यारी अपनी शान,
ये है हिंदुस्तान, ये है हिंदुस्तान ..... 
कोई भारत कह रहा 
कोई कहता इंडिया, 
सब है इसके नाम 
ये है हिंदुस्तान.....ये है हिंदुस्तान....
रह रहे मिलकर सभी,
जाति धरम हो जो कोई
प्यार है सबके दिलो में,
भेद न करता कोई,
मिलके रहते मिलके करते, जो भी करना हमको काम
ये है हिंदुस्तान......ये है हिंदुस्तान....

पूजा कर ली मंदिरों में
प्रार्थना गिरजे में की,
गुरूद्वारे की गुरुबानी को
सुनने जाते है सभी,
मस्जिदों में करने सजदा, सुनके जाते है अज़ान
ये है हिदुस्तान....ये है हिदुस्तान....

भगत सिंह की ये धरा
है चन्द्र शेखर की जमीं,
सुखदेव,अशफाक ने अपनी
जान हँसकर दी यहीं,
उन शहीदों पर रहेगा, उम्र भर हमको गुमान
ये है हिन्दुस्तान....ये है हिदुस्तान....


                    -- वीरेश अरोड़ा "वीर"



राज की बात



राज की बात


राम राज की आशा में, बैठें हैं जो नादान हैं वो,
हालत का वतन के ज्ञान नहीं, अज्ञानी हैं, अंजान हैं वो ।

मुखिया को अपने दल के जो अब राम बताया करते हैं,
उस दल का चमचा अपने को, कहता है कि हनुमान हैं वो । 

क्या उलझन वो सुलझाएंगे इस देश में रहने वालों की,
गैरों से नहीं जो लगता है, खुद अपने से परेशान हैं वो ।

वो मालिक भी बन सकते है इतिहास बताता है हमको,
जो कहते थे कुछ दिन के लिए इस देश के मेहमान हैं वो । 

बिन बारिश के जब खेतो मे अंकुरित बीज नहीं होते,
वो मरुभूमि के खेत नहीं, लगता है के शमशान हैं वो ।





Saturday 17 May 2014

" समझ रहा हूँ "



" समझ रहा हूँ "





देश के हालात समझ रहा हूँ 
है गहराई की बात समझ रहा हूँ 

बहुत कुछ पाया है यारों से 
क्या होती है घात समझ रहा हूँ 

सुख के दिन कब के बीत गए 
क्या होती है रात समझ रहा हूँ 

चोट के घाव तो सब देख रहें है 
क्या होते आघात समझ रहा हूँ 

चोट देकर मरहम लगाने लगे है 
क्या होती खैरात समझ रहा हूँ

दुश्मनों की पहचान तो है
यारों की औकात समझ रहा हूँ 

चोट मुझे लगी दर्द हुआ उसे 
क्या होते जज्बात समझ रहा हूँ 




                     -वीरेश अरोड़ा "वीर"





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