Sunday 18 May 2014

ठूंठ









          ठूंठ


मेरे प्यार के पौधे को
बिना किसी लालच के
प्यार की खाद,
संयम की धूप,
विश्वास के पानी से
मैंने बड़ा किया,
अचानक
एक दिन के
मौसम परिवर्तन से,
मेरे प्यार का पौधा
सूखकर ठूंठ हो गया,
आज जब कभी
पड़ती है उस पर नजर
एक दर्द सा दिल में उठता है,
आखिर
पूरी जिन्दगी का
सारा प्यार
मैंने उसे
खाद के रूप में दिया
इसलिए
मैं उसे फैकूंगा नहीं,
दिल का दर्द मिटाने को
एक दूसरा पौधा लाया हूँ मैं
दुगने प्यार और विश्वास से
उसे बड़ा कर रहा हूं,
मैंने इस पौधे को
उस ठूंठ के आगे खड़ा किया है .
मेरा ये पौधा
अब फल भी देने लगा है
मगर अपनी आगोश में
उस ठूंठ को
पूरी तरह
छिपा नहीं पाया है.....



      = वीरेश अरोड़ा "वीर"




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