Tuesday 20 May 2014

सर्दी - बाल कविता




सर्दी - बाल कविता



सर्दी हमको खूब है भाती
जिसे दिवाली लेकर आती 
गरमा - गर्म खाने को हो मन 
रहें धूप में बैठे हरदम 
मच्छर हो जाते है गुम
सबसे प्यारा सर्दी का मौसम
सर्दी प्यारी कभी न जाए 
प्रकृति भी इसका खेद जताए 
पतझड़ लाकर खेद जताती 
होली इसको लेकर जाती 

              - वीरेश अरोड़ा "वीर"

प्यास पर कुछ हाइकु




प्यास पर कुछ हाइकु



प्यास जो टूटी
कुछ कर जाने की
जीना बेकार

प्यास थी जब
जिन्दा था, हुआ तृप्त
मृत घोषित !

प्यास से आस
देश के विकास की
कभी ना टूटे !

मैं भी नहा लूँ
मैलापन मिटा लूं
गंगा की प्यास !




एक प्रश्न







एक प्रश्न



आज उनका आना
और मुँह  फेरकर चले जाना,
याद दिलाता है
वो दिन,
जो गुजरते न थे
मिले बिन,
दिवानों की तरह
जो मिलते थे कभी,
क्यों गुजर गए
वो बनकर अजनबी ?




एक प्रश्न










एक प्रश्न


 गुजर गए बरस
आँख गई तरस
कर रही हूँ इंतजार
जाने कब हो जाए दीदार
खड़ी हूँ दरवाजे पर
तेरे इन्तजार में
अड़ी हूँ ज़िद पर
मैं तेरे प्यार में
एक बार आ
बस इतना बता,
क्या मुझसे हो गयी खता,
मैं यह मानूं
कि तू खफा है,
या ये 
मानूं 
कि तू बेवफा है ?????


क्षणिकाएँ




आरज़ू




गर मिल सके तू मुझको,

बस एक बार मिल जा,

मैं तुझे गले लगाकर,

सारे गिले मिटा लूँ I




::::::::




गर ये तय है मिलोगे मुझे मरके,

तो क्यूँ न मर जाऊँ मैं तेरा क़त्ल कर के ///









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