Wednesday 21 May 2014

-:::: देश की बात ::::--


-:::: देश की बात ::::--



बात बहुत पुरानी है,
सबकी जानी-मानी है
नेता जी के गाँव का दौरा
शीघ्र चुनाव निशानी है.

जो देते है ऊँचें भाषण
प्रलोभन और झूठे आश्वासन
काम यदि वें कुछ कर जाएं
तब होती हैरानी है.

हाथ जोड़कर वोट मांगतें
और गधे को बाप मानते
सत्ता हाथ में आ जाने पर
करते वो मनमानी है.

जब मिलते है यार पुराने (सभा गृह में)
चाहे बीती सबकी जाने
कहते सुनते दिल न भरता
बात करें बचकानी है.

रहते है जब तक साथ में
चलते हैं दे हाथ हाथ में
सिद्ध स्वार्थ के हो जाने पर
कर जाते बेईमानी है.

जाने कैसी मजबूरी है
जाने कैसा नाता है ये,
उनको ही कहना है सब कुछ
जिनसे बात छिपानी है.

जो नेता है भ्रष्टाचारी
उनको सीख सिखानी है
और भ्रष्टाचार मिटाने को अब
हर देशवासी ने ठानी है.

हर नेता को याद दिला दूं
गर मुमकिन हो मैं समझा दूं
भारत माँ के बेटे हम सब
सच्चे हिन्दुस्तानी है…

    - वीरेश  अरोड़ा "वीर"





"चंपक वन में होली है"

होली पर एक बाल कविता ... "चंपक वन में होली है"




चंपकवन में होली है
खेल रहे हमजोली है
चूहा डाले बिल्ली पे रंग
लोंमड खेले शेरू के संग
बंदर ने मारी किलकारी
चीकू ले आया पिचकारी
भालू बजा रहा है चंग
हाथी नाचे मस्त मलंग
गीदड़ बना अब ढोली है
चंपक वन में होली है ..

- वीरेश अरोड़ा "वीर"




होली पर एक और बाल कविता -

होली का त्यौहार है आया



होली का त्यौहार है आया
रंगों की बाहर है लाया
डालें कच्चा पक्का रंग
सभी खेल रहे है संग
नाचें गाएं धूम मचाये
मिलकर ढोलक चंग बजाये
लेकर रंग रंगीले आया
होली का त्यौहार है आया

राम रहीम बने हमजोली
डालें रंग बनाकर टोली
कोई धर्म हो कोई जाति
सभी बने है संगी-साथी
गले लगे सब लगा गुलाल
दिल में ना अब कोई मलाल
भेदभाव मिटाने आया
होली का त्यौहार है आया



- वीरेश अरोड़ा "वीर"


समीक्षक




समीक्षक



किसी एक ग्रुप में एक छोटी सी रचना पर बहुत सारी आलोचनात्मक टिप्पणीयों को पढने के बाद बैठे बैठे जो लिख गया प्रस्तुत है :



रचनाकार का अनुरोध
रचना पर टिप्पणी दो
चाहे नकारात्मक हो
रचनाकार का अनुरोध
हमको भा गया
हमारे भीतर छिपे
समीक्षक को जगा गाया
मेरे भीतर
कब से छिपा
समीक्षक जाग गया
और एक छोटी सी रचना पर
विराट समीक्षा दाग गया
रचना पर समीक्षा
विराट रुप पा गई
और समी़क्षा के भीतर
रचना समा गई
बिखर गई
टूट गई
कहीं खो गई
रचना से रोचक
समीक्षा हो गई
और मूल रचना
अपना अर्थ खो गई
अर्थहीन हो गई.......

- वीरेश अरोड़ा "वीर"

याद





याद


जब तेरी याद आती है

याद आता है

तेरा मुस्कुराना,

मंद मंद  हँसना

वो तेरा लजाना

और धीरे से तेरा

बल खाके गुजर जाना,

तेरी हर बात आँखों में घूम जाती है

जब तेरी याद आती है ....

याद आता है बहुत

वो तेरा मिलना

मेरा हाथ थामे

तेरा साथ चलना

वो तेरी चुनरी का लहराना

हवा से

बालों का बिखर जाना,

तेरे बदन की वो खुशबू

आज भी आ जाती है

जब तेरी याद आती है ....



"रिश्ता/सम्बंध" पर मेरे कुछ हाइकु





रिश्ता/सम्बंध



थे शर्तो पर

कब तक रहते

रिश्ते हमारे



कोमल धागे

संबंधों के उलझे

गांठ का डर



अहं की गर्मी

रिश्तो का वटवृक्ष

ठूंठ हो गया



बंधक रिश्ते

शर्तो की बेडियो में

चलते कैसे



रिश्तों का घर

अहम् की दीमक

रिसते रिश्ते



छिप ना पाई

संबंधों की खटास

जग हँसाई



-वीरेश कुमार अरोड़ा "वीर"

- रीत -


- रीत -


रीत है प्यारे
पके आम पे सब
पत्थर मारे



नज़र आने लगा


                                        









जब दोस्तों के दिल मे ज्यादा छल नज़र आने लगा
तब दुश्मनो के दल मे ज़्यादा बल नज़र आने लगा I


देख कर बिगड़ी हुई हालत हमारे देश की
आज मुझको आने वाला कल नज़र आने लगा I


जैसे तैसे अब तलक तो खैच ली ये जिन्दगी
हो सकेगा अब गुजर मुश्किल नज़र आने लगा I

बन रही बिल्डिंग कई फिर बन रहा है एक शहर
फिर मुझे कटता हुआ जंगल नज़र आने लगा I

प्यार से रहने की उसने बात की जब भी अगर
आज के लोगो को वो पागल नज़र आने लगा I



चाहता हूँ मैं


गज़ल


  





ना जाने क्या अब और, करना चाहता हूँ मैं,
जीना अब और नहीं, मरना चाहता हूँ  मैं .

मर मर कर जीने से, क्या हांसिल होना है,
जी जी कर रोज़ नहीं, मरना चाहता हूँ मैं.

जीते जी खौफ रहा, मर जाने का मुझको,
मरने से अब और नहीं, डरना चाहता हूँ मैं .

हर रोज़ खुदा से मैंने, माँगा है कुछ ना कुछ,
कर्जा अब और नहीं, करना चाहता हूँ मैं .




सह गए



गज़ल



गम जुदाई का तो हँसकर सह गए
सामने आये तो आँसू बह गए

राजेगम दिल में रखेंगे सोचा था
अश्क आँखों के मगर सब कह गए

देखकर पहचानने की कोशिशें
उनके दिल की बात हमसे कह गए

मुद्दतों से इंतजार उनका किया
क्यों किया अब सोचते ही रह गए

ख्वाब देखे थे बहुत तन्हाई में
मिट्टी के घर की तरह सब ढेह गए


                                                 - वीरेश अरोड़ा "वीर"
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