गज़ल
गम जुदाई का तो हँसकर सह गए
सामने आये तो आँसू बह गए
राजेगम दिल में रखेंगे सोचा था
अश्क आँखों के मगर सब कह गए
देखकर पहचानने की कोशिशें
उनके दिल की बात हमसे कह गए
मुद्दतों से इंतजार उनका किया
क्यों किया अब सोचते ही रह गए
ख्वाब देखे थे बहुत तन्हाई में
मिट्टी के घर की तरह सब ढेह गए
- वीरेश अरोड़ा "वीर"
No comments:
Post a Comment