सह गए
गम जुदाई का तो
हँसकर सह गए
सामने आये तो
आंसू बह गए
राजेगम दिल में
रखेंगें सोचा था
अश्क आँखों के मगर
सब कह गए
देखकर पहचानने की कोशिशें
उनके दिल की
बात हमसे कह
गए
मुद्द्तों मैंने किया था
इन्तजार
क्यों किया अब
सोचते ही रह
गए
ख्वाब देखे थे
बहुत तन्हाई में
मिट्टी के घर
की तरह सब
ढह गए
-वीरेश अरोड़ा "वीर"