Sunday 18 May 2014

राज की बात



राज की बात


राम राज की आशा में, बैठें हैं जो नादान हैं वो,
हालत का वतन के ज्ञान नहीं, अज्ञानी हैं, अंजान हैं वो ।

मुखिया को अपने दल के जो अब राम बताया करते हैं,
उस दल का चमचा अपने को, कहता है कि हनुमान हैं वो । 

क्या उलझन वो सुलझाएंगे इस देश में रहने वालों की,
गैरों से नहीं जो लगता है, खुद अपने से परेशान हैं वो ।

वो मालिक भी बन सकते है इतिहास बताता है हमको,
जो कहते थे कुछ दिन के लिए इस देश के मेहमान हैं वो । 

बिन बारिश के जब खेतो मे अंकुरित बीज नहीं होते,
वो मरुभूमि के खेत नहीं, लगता है के शमशान हैं वो ।





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