Wednesday 21 May 2014

समीक्षक




समीक्षक



किसी एक ग्रुप में एक छोटी सी रचना पर बहुत सारी आलोचनात्मक टिप्पणीयों को पढने के बाद बैठे बैठे जो लिख गया प्रस्तुत है :



रचनाकार का अनुरोध
रचना पर टिप्पणी दो
चाहे नकारात्मक हो
रचनाकार का अनुरोध
हमको भा गया
हमारे भीतर छिपे
समीक्षक को जगा गाया
मेरे भीतर
कब से छिपा
समीक्षक जाग गया
और एक छोटी सी रचना पर
विराट समीक्षा दाग गया
रचना पर समीक्षा
विराट रुप पा गई
और समी़क्षा के भीतर
रचना समा गई
बिखर गई
टूट गई
कहीं खो गई
रचना से रोचक
समीक्षा हो गई
और मूल रचना
अपना अर्थ खो गई
अर्थहीन हो गई.......

- वीरेश अरोड़ा "वीर"

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