Sunday 18 May 2014

मंहगाई






मंहगाई







तेवर देखे मंहगाई के
खाने पर विचार हो गए
बिन सब्जी खाने को रोटी
मिर्ची से तैयार हो गए.

बड़ जाते है दाम तेल के
कभी किराये बड़े रेल के
बिजली पानी के भी घर में
मुश्किल अब दीदार हो गए.

एक टके में कल बिकते थे
तुच्छ समझते थे जिनको हम
भाव बड़े अचानक उनके
मंत्री बन सरकार हो गए.

स्वर्ण जयंती मना चुके हम
देश स्वतंत्र भारत की लेकिन,
जो देखे थे देश की खातिर
सपने सब बेकार हो गए.

सोचा वेतन वाले इक दिन
लें फल कुछ बच्चो के खातिर
भाव सुने तो न लेने से
इस माह फिर लाचार हो गए.

बच्चों के स्कूल खर्च में
पूरा वेतन जाता है अब,
कैसे और पढ़ाते उनको
कर्जा ले कर्जदार हो गए.

गर बच्चे स्कूल ना जाएँ
पढ़े नहीं अनपढ़ रह जाएँ
क्या होगा फिर कल का भारत
सोचा तो बीमार हो गए.

               
- वीरेश अरोड़ा "वीर"







ठूंठ









          ठूंठ


मेरे प्यार के पौधे को
बिना किसी लालच के
प्यार की खाद,
संयम की धूप,
विश्वास के पानी से
मैंने बड़ा किया,
अचानक
एक दिन के
मौसम परिवर्तन से,
मेरे प्यार का पौधा
सूखकर ठूंठ हो गया,
आज जब कभी
पड़ती है उस पर नजर
एक दर्द सा दिल में उठता है,
आखिर
पूरी जिन्दगी का
सारा प्यार
मैंने उसे
खाद के रूप में दिया
इसलिए
मैं उसे फैकूंगा नहीं,
दिल का दर्द मिटाने को
एक दूसरा पौधा लाया हूँ मैं
दुगने प्यार और विश्वास से
उसे बड़ा कर रहा हूं,
मैंने इस पौधे को
उस ठूंठ के आगे खड़ा किया है .
मेरा ये पौधा
अब फल भी देने लगा है
मगर अपनी आगोश में
उस ठूंठ को
पूरी तरह
छिपा नहीं पाया है.....



      = वीरेश अरोड़ा "वीर"




मैं और मरू

"मैं और मरू "


मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छा
ऊँ,
मरू भूमी के
कृषकों को
मैं हर्षाऊँ,
अपने कालेपन को लाकर,
खेतोँ में उनको ले जा
ऊँ
खेत जुता
ऊँ
मन हर्षित कर दूं,
बीज लगाते देखूं उनको
खुश हो जा
ऊँ
यथोवान्छित वृष्टि करके
बंजर को उपजाऊ कर दूं,
रेगिस्तान हटाने को,
हरयाली को लाने को
फिर मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छा
ऊँ
मरुप्रदेश में हरयाली हो
और मैं मिट जा
ऊँ .....



अभिलाषा



अभिलाषा


हर रिश्ते से पहले बेटा 
मैं भारत माँ का कहलाऊँ,
है अभिलाषा मेरी इतनी 
माँ की सेवा कुछ कर जाऊँ 

क्या जात धरम मालूम नहीं 
किस प्रान्त का हूँ क्या बतलाऊँ,
मैं भारत माँ का बेटा हूँ
बस हिन्दुस्तानी कहलाऊँ 

मैं स्वार्थ भुला दूं अपने सब 
परमार्थ के पथ को अपनाऊँ,
हित नहीं राष्ट्र से बढ़कर कुछ 
कोशिश कर सबको समझाऊँ 

भ्रष्ट नहीं है कोई भारत में 
सदाचारी है सब कह पाऊँ 
सोने की चिड़िया का वासी 
जग में वापस मैं कहलाऊँ 

गाँधी जी का अनुयायी बन
उनके पथ पर चलता जाऊँ,
कोशिश कर उनके सपनो को 
साकार बना कर दिखलाऊँ 

जो अमर शहीद हैं भारत के 
उनको न भूल कभी पाऊँ 
और रक्षा में भारत माँ की 
मरना हो हँस कर मर जाऊँ 

        
       -- वीरेश कुमार अरोड़ा 






मेरा देश महान



गीत - मेरा देश महान





देश है मेरा महान

इसकी न्यारी अपनी शान,
ये है हिंदुस्तान, ये है हिंदुस्तान ..... 
कोई भारत कह रहा 
कोई कहता इंडिया, 
सब है इसके नाम 
ये है हिंदुस्तान.....ये है हिंदुस्तान....
रह रहे मिलकर सभी,
जाति धरम हो जो कोई
प्यार है सबके दिलो में,
भेद न करता कोई,
मिलके रहते मिलके करते, जो भी करना हमको काम
ये है हिंदुस्तान......ये है हिंदुस्तान....

पूजा कर ली मंदिरों में
प्रार्थना गिरजे में की,
गुरूद्वारे की गुरुबानी को
सुनने जाते है सभी,
मस्जिदों में करने सजदा, सुनके जाते है अज़ान
ये है हिदुस्तान....ये है हिदुस्तान....

भगत सिंह की ये धरा
है चन्द्र शेखर की जमीं,
सुखदेव,अशफाक ने अपनी
जान हँसकर दी यहीं,
उन शहीदों पर रहेगा, उम्र भर हमको गुमान
ये है हिन्दुस्तान....ये है हिदुस्तान....


                    -- वीरेश अरोड़ा "वीर"



राज की बात



राज की बात


राम राज की आशा में, बैठें हैं जो नादान हैं वो,
हालत का वतन के ज्ञान नहीं, अज्ञानी हैं, अंजान हैं वो ।

मुखिया को अपने दल के जो अब राम बताया करते हैं,
उस दल का चमचा अपने को, कहता है कि हनुमान हैं वो । 

क्या उलझन वो सुलझाएंगे इस देश में रहने वालों की,
गैरों से नहीं जो लगता है, खुद अपने से परेशान हैं वो ।

वो मालिक भी बन सकते है इतिहास बताता है हमको,
जो कहते थे कुछ दिन के लिए इस देश के मेहमान हैं वो । 

बिन बारिश के जब खेतो मे अंकुरित बीज नहीं होते,
वो मरुभूमि के खेत नहीं, लगता है के शमशान हैं वो ।





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