Saturday 17 May 2014

" समझ रहा हूँ "



" समझ रहा हूँ "





देश के हालात समझ रहा हूँ 
है गहराई की बात समझ रहा हूँ 

बहुत कुछ पाया है यारों से 
क्या होती है घात समझ रहा हूँ 

सुख के दिन कब के बीत गए 
क्या होती है रात समझ रहा हूँ 

चोट के घाव तो सब देख रहें है 
क्या होते आघात समझ रहा हूँ 

चोट देकर मरहम लगाने लगे है 
क्या होती खैरात समझ रहा हूँ

दुश्मनों की पहचान तो है
यारों की औकात समझ रहा हूँ 

चोट मुझे लगी दर्द हुआ उसे 
क्या होते जज्बात समझ रहा हूँ 




                     -वीरेश अरोड़ा "वीर"





" वो "




" वो " 


बदले हालातो में ढल गया है वो 
सचमुच कितना बदल गया है वो 


जब तक साथ था मेरे ठीक था 
अब हाथ से निकाल गया है वो  


छाछ को भी फूँक कर पीने लगा 
किस हद तक संभल गया है वो 


उससे बिछड़े अरसा हुआ लेकिन
लगता है जैसे कल गया है वो  


सजा-ए-मौत भी शायद ही धो पाए 
मुँह पर कालिख जो मल गया है वो  


आज होना तय था जो हादसा 
उनके आ जाने से टल गया है वो  
           
          - वीरेश अरोड़ा "वीर"

 

गीतिका



साथ में बीते दिनों की याद आती है मुझे 

याद की खुशबू पहाड़ों से बुलाती है मुझे 


सो नही पाया संकू से मैं तेरे जाने के बाद 

ख्वाब में आकर रोजाना क्यूं जगाती है मुझे


ढेरों क़समें खाई थी मैनें निभा दी वो सभी 

अपने वादे न निभाकर वो सताती है मुझे 


मैं खूबियाँ ही खूबियाँ उसकी बयां करता रहा 

वो खामियाँ ही खामियाँ मेरी गिनाती है मुझे 


अपनी पलकों पर सजा कर मैंने रख्खा है जिसे 

मुझको नजरों से मेरी ही वो गिराती है मुझे 


साथ में उसके किसी को देख मैँ सकता नही 

साथ में आकर किसी के वो जलाती है मुझे 


                         -- वीरेश अरोड़ा "वीर"











गीतिका





चुप है वो कुछ राज तो जरूर होगा 
है यक़ीं ये भी के वो मजबूर होगा 

कल तलक़ जो राज करता था सभी पे 
सच बयां कर अब दिलों से दूर होगा 

सर कटाने की जिसे परवाह नही हो 
सर झुकाना उसको कब मंजूर होगा

जिसको जीते जी नही पूछा किसी ने 
क्या पता था मर के वो मशहूर होगा 

आईना दिखला रहा है राज पथ पर 
उसमें हिम्मत हौसला भरपूर होगा 

गिर पड़ा है भूख से वो चकराकर 
लोग कहते है नशे में चूर होगा 

                   - वीरेश अरोड़ा "वीर"
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