Saturday 17 May 2014

" वो "




" वो " 


बदले हालातो में ढल गया है वो 
सचमुच कितना बदल गया है वो 


जब तक साथ था मेरे ठीक था 
अब हाथ से निकाल गया है वो  


छाछ को भी फूँक कर पीने लगा 
किस हद तक संभल गया है वो 


उससे बिछड़े अरसा हुआ लेकिन
लगता है जैसे कल गया है वो  


सजा-ए-मौत भी शायद ही धो पाए 
मुँह पर कालिख जो मल गया है वो  


आज होना तय था जो हादसा 
उनके आ जाने से टल गया है वो  
           
          - वीरेश अरोड़ा "वीर"

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