Saturday 17 May 2014

 

गीतिका



साथ में बीते दिनों की याद आती है मुझे 

याद की खुशबू पहाड़ों से बुलाती है मुझे 


सो नही पाया संकू से मैं तेरे जाने के बाद 

ख्वाब में आकर रोजाना क्यूं जगाती है मुझे


ढेरों क़समें खाई थी मैनें निभा दी वो सभी 

अपने वादे न निभाकर वो सताती है मुझे 


मैं खूबियाँ ही खूबियाँ उसकी बयां करता रहा 

वो खामियाँ ही खामियाँ मेरी गिनाती है मुझे 


अपनी पलकों पर सजा कर मैंने रख्खा है जिसे 

मुझको नजरों से मेरी ही वो गिराती है मुझे 


साथ में उसके किसी को देख मैँ सकता नही 

साथ में आकर किसी के वो जलाती है मुझे 


                         -- वीरेश अरोड़ा "वीर"







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