Sunday 18 May 2014

मैं और मरू

"मैं और मरू "


मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छा
ऊँ,
मरू भूमी के
कृषकों को
मैं हर्षाऊँ,
अपने कालेपन को लाकर,
खेतोँ में उनको ले जा
ऊँ
खेत जुता
ऊँ
मन हर्षित कर दूं,
बीज लगाते देखूं उनको
खुश हो जा
ऊँ
यथोवान्छित वृष्टि करके
बंजर को उपजाऊ कर दूं,
रेगिस्तान हटाने को,
हरयाली को लाने को
फिर मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छा
ऊँ
मरुप्रदेश में हरयाली हो
और मैं मिट जा
ऊँ .....



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