"मैं और मरू "
मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छाऊँ,
मरू भूमी के
कृषकों को
मैं हर्षाऊँ,
अपने कालेपन को लाकर,
खेतोँ में उनको ले जाऊँ
खेत जुताऊँ
मन हर्षित कर दूं,
बीज लगाते देखूं उनको
खुश हो जाऊँ
यथोवान्छित वृष्टि करके
बंजर को उपजाऊ कर दूं,
रेगिस्तान हटाने को,
हरयाली को लाने को
फिर मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छाऊँ
मरुप्रदेश में हरयाली हो
और मैं मिट जाऊँ .....
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